T Dilip Kon Hai-एक लड़का क्रिकेटर बनना चाहता था। खेल नही जुनून था उसके लिए क्रिकेट। सोचा कोई एकेडमी ज्वाइन कर लू, क्या पता भीतर छुपा टेलेंट बाहर आ जाएं। पर वहा लगते थे पैसे, जो उस लड़के के पास थे नही।पर हौंसला था, हर हालात से लड़ने का। पढ़ने लिखने में मेहनती था तो उसने बच्चो को मैथ की ट्यूशन देना शुरू कर दिया। जो कमाता था वो एकेडमी के हवाले कर देता था, अपना कोई शौक नही था उसका। एक शौक था वैसे, पढ़ाने का।इसी शौक की वजह से वो क्रिकेट एकेडमी में छोटे बच्चो के बीच चला जाता। वहा वो बच्चो को वो सिखाता जो उसने सीखा था।
टी दिलीप के कोच बनने का सफर
धीरे धीरे बच्चे उसकी सलाह पर अमल करने लगे, और जब वो अच्छा परफॉर्म करते तो उसे लड़के के अंदर का एक मायूस कोना उन्हे कामयाब होता देखकर खिल उठता। कुछ वक्त गुजरने के बाद उस लड़के को समझ आया कि मेरा प्यार तो क्रिकेट है, पर मुझे कामयाब होने से ज्यादा खुशी किसी को कामयाब होते हुए देखकर होती है। फिर कुछ सोचकर उसने फैसला किया कि मैं कोचिंग के लिए जरूरी सारी चीजे सीखूंगा। फिर उस लड़के ने कोचिंग की जरूरी मेरिट पूरी की और हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन ने उसे असिस्टेंट फिल्डिंग कोच की जॉब दे दी।
असिस्टेंट ही सही, पर लड़का अब कोच बन गया था। शादी की उम्र हो रही थी, मौके भी आए पर उस लड़के को कुछ और करना था और उसके दरमियान वो किसी तरह की रुकावट नहीं चाहता था। वो जानता था कि उसके दिन के 24 घंटे दूसरे खिलाड़ियों को निखारने में लग जाने है, तो शादी जैसे जिम्मेदारी भरे रिश्ते के लायक वो खुद को नही समझता था। अपनी लगन और मेहनत से वो धीरे धीरे ही सही पर अपने गोल की तरफ बढ़ रहा था। उसका गोल क्या था, नेशनल क्रिकेट एकेडमी का हिस्सा बनना। जहा पूरे देश की नई क्रिकेट प्रतिभाओं को निखारा और सवारा जाता है।
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टी दिलीप का शुरुआती सफर (T Dilip Kon Hai)
उस लड़के की ख्वाहिश थी की वो एनसीए में वो नौकरी हासिल करे जिसमे उसे एनसीए में ही क्रिकेट और क्रिकेट खेलने वालो के बीच रहना हो। उसी दौरान आईपीएल टीम डेक्कन चार्जर्स में उसे नौकरी मिल गई, वहा उसे बहुत सीखने समझने को मिला। फिर एक दिन ऐसा आया जब वो एनसीए में रेजिडेंस के तौर पर ज्वॉइन हो गया। उसे एनसीए की पेमेंट से तीन गुना ज्यादा के भी ऑफर मिले पर उसे यही करना था। और फिर वही होने लगा, दिन रात की मेहनत।
2017 में इंडिया ए की टीम बांग्लादेश गई, उस लड़के को टीम के साथ भेजा गया। फिर एक समय आया जब भारतीय क्रिकेट टीम की दो टीमें अलग अलग दौरे पर गई थी तो एक टीम का फील्डिंग कोच उसे नियुक्त किया गया। वहा उसकी मुलाकात राहुल द्रविड़ से हुई। राहुल द्रविड़ से उसने कहा कि मैं अपनी टीम से बात करना चाहता हु, द्रविड़ की इजाजत से उसने बोलना शुरू किया, बात खत्म हुई तो द्रविड़ ने आकर उसका कंधा थपथपाया और शाबाशी दी।
उस दौरान उस लड़के की इंग्लिश अच्छी नही थी, वो प्लेयर्स से मिलकर अपनी बाते पूरी तरह से नही कह पाता था। वो वापस आया तो उसने अपने एक दोस्त को पकड़ा और कहा कि मैं रोज आधे घंटे किसी एक टॉपिक पर बोलूंगा तुम बस मुझे ऑब्जर्व करके बताना की क्या गलत कर रहा हु क्या सही। ऑनलाइन वॉयस चैट ग्रुप में वो ऐसे ही घुस के अपनी इंग्लिश झाड़ता रहता। धीरे धीरे उसने अपनी भाषा और स्पीच सुधार ली।
टी दिलीप लाये टीम की फिल्डिंग में रोचकता
अब जब अगली दफा उसे इंडियन टीम का फील्डिंग कोच नियुक्त किया गया तो वो बहुत क्लियर तरीके से अपनी बात खिलाड़ियों को समझा सकता था।फिर आया साल 2023, भारतीय टीम और टीम मैनेजमेंट पर बहुत सवाल उठ रहे थे। कागज पर इस टीम की मजबूती पर किसी को शक नहीं था, पर ये सब एक साथ क्लिक नही हो पा रहे थे। उस लड़के को लगा कि कुछ तो किया जाना चाहिए जिससे टीम के अलग अलग मोतीयो को एक धागे में पिरो कर जीत की माला बनाई जाए। उसने एक नया ट्रेडिशन शुरू किया, बेस्ट फिल्डिंग के लिए मेडल देने का।
इससे मैदान के अंदर और मैदान के बाहर एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा शुरू हुई खिलाड़ियों में जिसका असर उनकी परफॉर्मेंस में आया। मेडल सेरेमनी को इंट्रेस्टिंग बनाने के लिए उस लड़के ने दुनिया जहा के पैंतरे आजमाए, कभी स्टेडियम की स्क्रीन पर मेडल अनाउंस होता, कभी स्पाइडी कैम पर विजेता की फोटो टंगी मिलती। तो कभी स्टेडियम की रंगीन रोशनी बताती की आज कौन जीता है।
टी दिलीप की फिल्ड कोचिंग है अलग
बाकी टीम भी बहुत मजबूत और टेलेंटेड है, पर उनके पास टी दिलीप जैसा कोच नही है। जिसे टीम को बांधना आता हो, जो छोटी छोटी चीजों को इतना इंट्रेस्टिंग बना दे कि मैदान में ही खिलाड़ी कैच लेकर उनकी तरफ इशारे करके कहे कि मुझे मेडल दो। बेशक भारतीय टीम के खिलाड़ी मेहनती और टैलेंटेड है, पर आई टीम के पीछे टी दिलीप जैसे कितने लोगो का जुनून है जो इस टीम को आज उस मुकाम तक ले गया है कि जीतना छोड़िए कोई टीम लड़ नही पा रही इसके सामने। टी दिलीप को देखकर आप एक टीचर की अहमियत समझ सकते है, दिलीप के नाम कोई रिकॉर्ड नहीं है, ना ही वो फर्स्ट क्लास का बहुत बड़ा नाम है, पर दूसरो की कामयाबी से खुश होने की आदत ही उन्हे दुनिया के सभी कोच से अलग करती है।
हम आशा करते हैं कि अब आप यह जान गए हो कि T Dilip Kon Hai और उनकी कोचिंग में इंडियन टीम फील्डिंग में हर रोज नए आयाम स्थापित कर रही है।