Ekadashi Kab Hai?जाने एकादशी तिथि कब है और क्या है इसका महत्त्व,2024 से 2025 तक की लिस्ट!

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Ekadashi Vrat List

Ekadashi Vrat ( एकादशी व्रत )

Ekadashi Kab Hai:सनातन धर्म में एकादशी का व्रत करने से साधक पर भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है। पंचांग के अनुसार हर महीने की शुक्ल और कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर एकादशी का व्रत किया जाता है। यद्यपि शास्त्रों में अनेक प्रकार के सकाम व्रत का वर्णन है, परंतु भगवत भक्ति की प्राप्ति के लिए, भगवत प्रसन्नता के लिए एकादशी का पालन करना और व्रत रखना चाहिए।

जगत के नश्वर पदार्थ की प्राप्ति हेतु अनेक देवी देवताओं के विभिन्न प्रकार के व्रताचरण करना भक्ति का अंग नहीं है। श्री हरि की प्रिय तिथि को (एकादशी) केवल भूखा ही नहीं रहा जाता, निराहार रहने में समर्थ व्यक्ति को फलाहार का विधान है, पर विशेष रूप से सत्संग, भजन, साधना करना एकादशी व्रत में आवश्यक है। Ekadashi Kab Hai?Ekadashi Kab Hai?Ekadashi Kab Hai?Ekadashi Kab Hai?

व्रतोपवास का अर्थ है विशेष नियम के पालन का संकल्प करना, प्रतिज्ञा करना। उपवास का अर्थ है भगवान के नजदीक रहना। इस प्रकार भगवान के समीप रहने का संकल्प करना सही अर्थ में उपवास है। 

जिस तरह एकादशी करने का महत्व है उतना ही महत्व समय से पारण (व्रत खोलना) करने का भी है अन्यथा व्रत निष्फल हो जाता है।

Ekadashi Vrat में क्या-क्या नहीं करना चाहिए? 

एकादशी में उपवास के दिन श्रृंगार हेतु पुष्प भूषण (गहने) नवीन वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए। धूप, गंध, अनुलेपन, दातुन करना, (जीभ साफ कर सकते हैं) साबुन लगाना, क्षौर करना, बाल बनाना, आटा पीसना, पान, जर्दा, बीड़ी, दिन में शयन करना, बार-बार जल पीना, आंखों में काजल लगाना आदि वर्जित है। एकादशी का व्रत करने वाले साधक को दसवीं के दिन से चावल नहीं खाने चाहिए। और दसवीं की शाम को भोजन जल्दी कर लेना चाहिए।

एकादशी को भगवान का अन्यमय महाप्रसाद भी नहीं लेना चाहिए। क्योंकि महाप्रसाद की महिमा और एकादशी की महिमा अलग-अलग है। दोनों का पालन शास्त्र आज्ञा है इस कारण एकादशी के दिन अन्यमय महाप्रसाद को सुरक्षित रख द्वादशी के दिन पारण (व्रत खोलना) करना चाहिए। हर्ष का समय हो, या कितनी भी आपत्ति का समय क्यों ना हो, सूतक (जन्म, मरण) किसी भी अवस्था में एकादशी का व्रत नहीं त्यागना चाहिए।

Ekadashi Kab Hai? महत्वपूर्ण तिथियां 2024 से 2025 तक 

12 माह में कुल 24 एकादशी व्रत होते हैं। परंतु हिंदी कैलेंडर के अनुसार कभी-कभी 25 और 26 एकादशी व्रत भी हो जाते हैं। क्योंकि हिंदी कैलेंडर के अनुसार 13 माह होते हैं। जिसे हम अधिक मास कहते हैं। जो तीन वर्ष में एक बार आता है। अधिक मास में 26 एकादशी होती है। हम आपको इस आर्टिकल में बताएंगे कि 2024 से 2025 तक हिंदी कैलेंडर के अनुसार, सभी एकादशी के व्रत की तिथियां एवं उनके नाम की लिस्ट नीचे दी जा रही है। आईए देखते हैं। 

Ekadashi Date  Ekadashi Name 
19/04/2024 कामदा एकादशी व्रत 
04/05/2024 वरुथिनी एकादशी व्रत
19/05/2024 मोहिनी एकादशी व्रत
02/06/2024 अपरा एकादशी व्रत
17/06/2024 निर्जला एकादशी व्रत
02/07/2024 योगिनी एकादशी व्रत
17/07/2024 देवशयनी एकादशी व्रत
31/07/2024 कामिका एकादशी व्रत
15/08/2024 पुत्रदा एकादशी व्रत
29/08/2024 जया (अजा) एकादशी व्रत
14/09/2024 डोल ग्यारस व्रत
28/09/2024 इंदिरा एकादशी व्रत
13/10/2024 पापांकुशा एकादशी व्रत
28/10/2024 रमा एकादशी व्रत
12/11/2024 देवउठनी ग्यारस
26/11/2024 उत्पन्ना एकादशी व्रत
11/12/2024 मोक्षदा एकादशी व्रत
26/12/2024 सफला एकादशी व्रत
10/01/2025 पौष पुत्रदा एकादशी व्रत 
25/01/2025 षट्तिला एकादशी व्रत
08/02/2025 जया एकादशी व्रत 
24/02/2025 विजया एकादशी व्रत
10/03/2025 आमलकी एकादशी व्रत
25/03/2025 पापमोचनी एकादशी व्रत

Ekadashi Vrat को रखने के प्रकार 

एकादशी का व्रत अपनी श्रद्धा और भक्ति के अनुसार जो संभव हो करना चाहिए -निराहार रहने में समर्थ व्यक्ति को फलाहार का विधान है। आपको निम्न तरीके से एकादशी का व्रत रख सकते हैं। 

  • निर्जला व्रत 
  • उपवास व्रत 
  • केवल एक बार अन्नरहित दूध से बने पदार्थ का ग्रहण 
  • नक्त व्रत ( दिनभर उपवास रखकर रात्रि में फलाहार करना)

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अशक्त, वृद्ध, बालक और रोगी जो भी व्रत करने में असमर्थ है, यथासंभव अन्न आहार का परित्याग तो एकादशी के दिन अवश्य करना ही चाहिए। परंतु हमेशा ध्यान रहे, कि दो व्रत एक साथ नहीं हो सकते क्योंकि एक दिन का व्रत होने पर दूसरे दिन उसका पालन करना या व्रत खोलना आवश्यक होता है।

यदि आप एकादशी का व्रत रखते हैं तो आप फलाहार में आलू, अरबी, कंद, फलमूल, कद्दू  को छोड़कर अन्य सब तरकारियां (सब्जी) खाना भी मना है। दूध या दूध से बने हुए पदार्थ आप उपवास में ले सकते हैं। तेल, लाल मिर्च, हल्दी, जीरा सांभर नमक आदि मसाले एकादशी के व्रत में नहीं खाना चाहिए। इसके अलावा, भूमि में शयन, उपवास के प्रथम दिन ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करना चाहिए। 

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